Yu hi be-sabab na fira karo - Bashir Badr (full gazal) - Sad Poetry in Urdu

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Friday, January 24, 2020

Yu hi be-sabab na fira karo - Bashir Badr (full gazal)




यूंही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो 
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो 

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से 
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो 

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा 
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो 

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियां 
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो 

कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में 
जो मैं बन संवर के कहीं चलूं मिरे साथ तुम भी चला करो 

नहीं बे-हिजाब वो चांद सा कि नज़र का कोई असर न हो 
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो 

ये ख़िज़ां की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है 
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आंसुओं से हरा करो 

- बशीर बद्र 













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